तुम और तुम्हारी ये अजीबो गरीब फरमाइशे कई बार मुझे बहुत परेशान करती है जैसे आज परेशान कर रही है तुम्हारी एक खवाइश । तुमने तो कितनी आसानी से कह दिया न की तुम चाहती हो मै तुम्हारे लिए तुम्हारे बारे में कुछ लिखू । कितना कहा था मैंने तुमसे की मुझे लिखना नहीं आता । और वैसे भी मै कोई लेखक, कवि या शायर तो हू नहीं जो कुछ अच्छा लिख पाऊ तुम्हारे लिए । पर फिर भी तुम कहा मानने वाली एक बार कह दिया सो कह दिया । और फिर हमेशा की तरह अन्त में मुझे ही हार मान कर तुम्हारी बात पड़ी ।
और अब देखो बैठ तो गया हू तुम्हारे लिये कुछ लिखने तुम्हारे बारे में
पर क्या लिखू कुछ समझ नहीं आ रहा
क्या लिखू की तुम्हे पसंद आए
क्या लिखू
क्या तुम्हारी खूबसूरती के बारे में लिखू की तुम कितनी खूबसूरत हो । या तुम्हारी सादगी के बारे में लिखू की इतनी खूबसूरत होने के बाद भी तुम इतनी सादगी पसंद हो और हमेशा मानती हो की तन की खूबसूरती से जादा मन की खूबसूरती जरुरी है । या तुम्हारी मासूम सी मुस्कान के बारे में लिखू जो मेरे साथ शरारते करते समय तुम्हारे चहरे पर होती है
क्या लिखू
क्या लिखू
क्या तुम्हारी बातो के बारे में लिखू पर वो लिखना ठीक नहीं होगा शायद क्योकि तुम इतनी सारी बाते हो । की कई बार तो मुझे ही बोलने का मौका नहीं देती । और वैसे भी अगर तुम्हरी बातो के बारे में लिखने बैठा तो हो सकता है पूरी किताब बन जाये ।
आज भी अच्छे से याद है मुझे जब पहली बार मिला था तुमसे तो लगा था कि इस लड़की के साथ एक पल नहीं गुजार सकता क्योकि तुम इतनी सारी बाते करती हो और मै हरदम खामोश सा रहता हू
पर फिर भी धीरे धीरे तुम्हे जानने के बाद समझने के बाद तुम्हारी बातो से भी मुझे प्यार हो गया क्योकि तुम्हारी ये बाते ही तो है जो तुम्हे दुसरो से अलग करती है और अब तुम कभी खामोश भी होती हो तो ऐसा लगता है की मेरी जिंदगी ही थम सी गई ।
अरे मै भी न तुम्हारे साथ रह रह कर ख्यालो की दुनिया में खोने लगा हू भूल ही गया की कुछ लिखना है तुम्हारे लिए
क्या लिखू क्या लिखू की तुम खुश हो
क्या तुम्हारी पसंद नापसंद के बारे में लिखू
कि तुम्हे बारिशो में भीगना पसंद है तुम्हे ठंड में आइसक्रीम खाना पसंद है और तुम्हारी सबसे बड़ी पसंद किताबे हाँ किताबे सबसे ज्यादा पसंद है न तुम्हे तुम अक्सर कहती हो किताबे इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती है क्योकि कभी भी वो तुम्हारा साथ नहीं छोडती । तुम्हे कहानियो की किताबे सबसे जादा पसंद है इसलिए तो तुम रोज कोई न कोई कहानी पढ़ती हो । और फिर घंटो उस कहानी के किरदारों की जिंदगी में खोई रहती हो । कभी उन्हें अपनी जिंदगी से जोड़ती तो कभी खुद उनकी जिंदगी से जुड़ जाती है । पर कहानियों से तुम्हे कई शिकायते भी है । याद है मुझे एक दिन तुमने मुझस एक सवाल किया था कि जिंदगी भी कहानिया की तरह क्यों नहीं होती । जिस तरह हमेशा कहानियो के अंत में सब ठीक हो जाता है सभी पात्रो को उनका सही मक़ाम मिल जाता है उसी तरह जिंदगी में ऐसा क्यों नहीं होता ।
और तुम्हारे इस सवाल पर भी मै हमेशा की तरह खमोश खड़ा तुम्हे देखता रहा था । ऐसा पहली बार नहीं था की तुम मुझसे जिंदगी को कहानियो से जोड़कर सवाल कर रही थी तुम अक्सर मुझसे ऐसे सवाल करती हो और मै कभी समझ ही नहीं पाता क्या जवाब दू बस तुम्हारी कहानियो और तुमम्हे उलझ जा जाता है
जैसे आज उलझ गया हू बैठा तो हू लिखने पर अभी तक समझ नहीं आया क्या लिखू
क्या लिखू
क्या लिखू
क्या लिखू ..................
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